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Writing for TV News: Class Assignment: Batch of 2027-28

Aug 29, 2010

जिंदगी, कविता , जिंदगी

सुबह ही की तो बात है

तमाम कविताएं बंद करके

डाल दीं थीं पिछले कमरे में

शाम हुई

वहां हलचल दिखी

अंदर झांका

कविताएं बहा रही थीं आंसू

एक दूसरे की बाहों में

कहतीं कुछ यूं

कि नहीं रहेंगी

उसके बिना

जिसने उन्हें किया था पैदा

ये कविताएं हमजोली थीं

फुरसत थी उनके पास

कहने की दिल का हाल

 

हां, कविताएं थीं

तभी तो ऐसी थीं

3 comments:

RAJESHWAR VASHISTHA said...

अच्छी कविता होने के लिए उसे सीधी सरल और चमत्कारी होना चाहिए....और यह एक ऐसी ही कविता है...कविताएँ, कवि को ही नहीं पाठकों को भी ऐसे ही बुला लेती हैं अपने पास ।

वीरेंद्र सिंह said...

Sunder bhaav......

Madan tiwary said...

कविता वही जो पाठकों की संवेदना से संवाद स्थापित करे । ईस कविता ने भावनाओं के साथ संवाद किया है। बधाई हो मेरी शु्भकामना है।