May 31, 2012

A student-teacher relationship


चुप्पी

कमरे की खिड़कियां और रौशनदान
बंद कर दिए हैं
कुछ दिनों के लिए

हवा ताजी हो तो
हमेशा ऐसा नहीं होता

बाहर का बासीपन कमरे में आता है
तो चेहरे पर पसीने की बूंदें चिपक जाती हैं

बंद कमरे में
अलमारी के अंदर
सच के छोटे-छोटे टुकड़े
छिपा दिए हैं
लब अब भी सिले हैं

जिस दिन खिड़कियां खुलेंगीं
लब बोलेंगें
लावा फूटेगा
हवा कांप उठेगी

नहीं चाहती कांपे बाहर कुछ भी
इसलिए मुंह पर हाथ है
दिल पर पत्थर
.................

May 21, 2012

संसद से सड़क तक– हम धन्यवाद नहीं कहते

रानियां सब जानती हैं
उनकी आंखों में सपने
तैरते ही नहीं
वे अधमुंदी भारी
पलकों से रियासतें देखती हैं
सत्ताओं के खेल
राजा की चौसर

वे इंतजार करती हैं
अपने चीर हरण का
या फिर आहुति देने का

वे जानती हैं
दीवार के उस पार से
होने वाला हमला
उन्हें ही लीलेगा
पहले

पर वे यह भी जानती
हैं
गुलाब जल से चमकती
काया
मालिशें
खुशबुएं
ये सब चक्रव्यूह हैं

वे जानती हैं
पत्थर की इन दीवारों
में कोई रोशनदान नहीं
और पायल में दम नहीं

मकबरे यहीं बनेगें
तारीखें यहीं बदलेगीं
पर उनकी किस्मत नहीं
रानियां बुदबुदाती
हैं

गर्म दिनों में सर्द
आहें भरतीं हैं
सुराही सी दिखकर
सूखी रहती हैं
अंदर, बहुत अंदर तक (( थी हूं रहूंगी से)


म्यूजिकल चेयर खेलने की घंटी बज चुकी है। दौड़ दिलचस्प होती दिख रही है। खास तौर पर इसलिए कि मामला देश की सबसे बड़ी और सबसे सुनहरी कुर्सी का है। पर इस खेल में मजे से ज्यादा किरकिराहट है और वही खेल के स्वाद को फीका भी कर रही है।

राष्ट्रपति के तौर पर अपनी अंतिम विदेश यात्रा से लौटते हुए विमान में देश की प्रथम महिला ने इस बात को साफ किया कि राष्ट्रपति की विदेश यात्रा को सरकार तय किया करती है, न कि राष्ट्रपति भवन। उन्होंने यह भी कहा कि वे पहली या अंतिम राष्ट्रपति नहीं हैं जिनके साथ उनका परिवार यात्रा पर गया हो। इससे दुखद और क्या होगा कि किसी देश की प्रथम महिला को ऐसे विवादों और सवालों का जवाब देना पड़े जो उनके कार्यकाल से पहले या उनके बाद भी उपज सकते थे। कार्यकाल का अंतिम समय, जो कि सुखद और भावुक क्षण होना चाहिए या फिर उपलब्धियों पर गरिमामय उल्लास का भी, वहां बेवजह के सवालों के जवाब देने की मजबूरी राष्ट्रपति के स्तर से ज्यादा सामाजिक जड़ की कमजोरी ही दिखती है।

देश का अगला राष्ट्रपति कौन हो- इसकी तमाम चिंताओं के बीच दरअसल इस समय एक नई राजनीति मौजूदा राष्ट्रपति की काबिलियत को लेकर शुरू हो गई है। दलित राष्ट्रपति, मुस्लिम राष्ट्रपति, सिख राष्ट्रपति, महिला राष्ट्रपति के बाद इस बार क्या हो, इस पर बहस का बाजार गर्म है। नए आगमन को लेकर चर्चाएं हैं पर जिनकी विदाई है, वे इससे कहीं ज्यादा चर्चा और विवाद का केंद्र बना दी गईं हैं।

तस्वीरें काफी तेजी से बदलती हैं। जुलाई 2007 में को मीडिया की सुर्खियां प्रतिभा सिंह पाटिल थीं - देश की पहली महिला राष्ट्रपति, सौम्य, सजग, संवेदनशील वगैरह। उनके लिए वे तमाम विश्लेषण इस्तेमाल किए गए जो किसी की गरिमा को चार चांद लगा सकें। यह बार-बार याद दिलाया गया कि वे आज तक कभी कोई चुनाव नहीं हारी हैं और बेहद प्रतिभावान है। उनके साथ उम्मीदों की एक भारी पोटली बांध दी गई। उनके जहन में भी महिला सशक्तिकरण और मजबूत भारत का सपना हमेशा रहा और उसे निभाने में यह पांच साल पंख लगाकर उड़ भी गए। अब लगा था कि यह समय उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापन का होगा।

पर अब एक नई तस्वीर उभर रही है। यहां विवाद हैं। उन्हें क्यों चुना गया, क्या वे इस काबिल थीं, क्या वे वाकई राष्ट्रपति के तौर पर इस देश के लिए कुछ कर पाईं, उनकी यात्राओं पर 205 करोड़ रूपए का खर्च क्यों और कैसे हुआ, उनके परिवार ने उनके पद का कितना दुरूपयोग किया, उनके बेटे और पति ने कैसे अपने लिए कई सुविधाएं जुटा लीं, उन्हें पुणे की जमीन किस आधार पर मिली, उन्होंने महिलाओं के लिए कुछ किया या नहीं और क्या वे महज एक रबर स्टांप राष्ट्रपति थीं वगैरह। सवालों की झड़ी लंबी है। इन सवालों पर सोचने की जरूरत भी महसूस की जा सकती है पर साथ ही यह भी लगता है कि यह तमाम सवाल एक गलत समय पर उठे हैं और इसलिए इनका औचित्य भी कमजोर दिखाई देता है क्योंकि इन्हें शायद किसी विमर्श के लिए उठाया ही नहीं गया है। यह सब सवाल न तो चिंता की वजह से उठाए गए हैं और न ही किसी तरह के चिंतन के लिए। यह सवाल सिर्फ सवालों की भीड़ को खड़ा करने के लिए उठाए गए हैं। वैसे भी अगर वे एक रबर स्टांप राष्ट्रपति थीं तो फिर ज्ञानी जैल सिंह या फरूखीद्दिन अली अहमद क्या थे। तमाम राष्ट्रपति किसी न किसी स्तर पर रबर स्टांप रहे पर उन्हें लेकर इस तरह की तीखी टिप्पणियां नहीं हुईं।

दूसरे, बाकी बहुत से नेताओं या शीर्षस्थ पदाधिकारियों के मुकाबले प्रतिभा पाटिल ने यहां भी समझदारी ही दिखाई। वे उलझीं नहीं। पुणे की जमीन को लेकर विवाद हुआ तो उन्होंने उसे लौटा ही दिया लेकिन उनके इस कदम पर कोई प्रशंसात्मक खबर नहीं बनी। इसके अलावा उनके विद्या भारती शिक्षण प्रसारक मंडल पर कभी विस्तार से चर्चा नहीं की गई। यह मंडल अमरावती, जलगांव और मुंबई में स्कूल और कालेज चलाता है। उन्होंने श्रम साधना ट्रस्ट के तहत दिल्ली, मुंबई और पुणे में कामकाजी महिलाओं के लिए हास्टल भी बनाए पर वे भी कभी सकारात्मक खबर का केंद्र नहीं बने। इसी तरह जलगांव का इंजीनियरिंग कालेज और चीनी की फैक्टरी भी खबर से दूर रहे।

इस बार वजह साफ समझ में आती है। जिस वजह से प्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपति के पद के लिए चुना गया, वही उनका विरोधी भी साबित हुआ है। उनका महिला होना, सौम्य होना और चुप्पी को साधे रखना। बेहद मुखर राजनीतिक माहौल और उद्देलित मीडिया के बीच यह काबिलियत नाकाबलियत ही ज्यादा है। अगर ऐसा न होता तो नरेगा और राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण को लेकर राष्ट्रपति जिस तरह लगातार सक्रिय और चिंतित रहीं, उन पर इस समय शायद कसीदे गढ़े जाते। पर चीजें बदलती हैं। कई बार विदाई को आभार की बजाए नकारात्मक तरीके से अंजाम दिया जाता है। इस बार भी यही हुआ है पर लगता है कि कम के एक देश की प्रथम महिला को तो कम से कम महिला होने का खामियाजा भुगतने से बचाया जाता और कम से कम यहां तो मीडिया महिला के प्रति भेदभावी रिपोर्टिंग से उबर पाता। यह गैर-जिम्मेदाराना, एक-पक्षीय और महिला के विपक्ष में की जाने वाली रिपोर्टिंग की एक ऐसी मिसाल है जिसे सालों याद किया जाएगा। वैसे भी वे रानियां ही क्या जिन्हें अंजाम भुगतने न पड़ें।

May 14, 2012

The man in ‘show’ business

Monday, May 12, 2012

Manoj Sharma, Hindustan Times

He is a ‘journalist’ of a different kind: For Aakash, the cellphone, not the pen, is mightier than the sword. His BlackBerry has over 3,000 contact numbers — of everyone who is someone in the country. And he also claims to have launched many fresh faces on news television. Aakash (he uses his first name only) heads the ‘guest desk’ of the news channel CNN-IBN. His job is to organise talking heads for various shows hosted on the channel.


“I work closely with the editor-in-chief and the news desk and source the best analysts, newsmakers and experts for the special shows hosted on the channel. Except my editors, few people in my office know what I do,” says the 34-year-old.

After passing out of Indian Institute of Mass Communication, Aakash joined DD News in 2002, where his senior offered him three options: Either he could work as a guest coordinator, reporter, or a producer. “I chose the first option and have no regrets,” says Akash, who was born and brought up in Patna.

 Aakash arranges for about 12 guests every day for the channel, including for the prime time 9.00pm news. His day begins with calling people at 7.30 in the morning from the bathroom itself. He claims to remember contact numbers of at least 150 guests.

“At times, I feel like a call centre guy; I speak to at least 40 people before I get the required number of guests. Journalists and politicians are the most accessible; serving bureaucrats and some industrialists are not quite so,” he says, adding, “Once when I called a constitutional expert at 10.30pm, he yelled at me and said, ‘you are an idiot of the highest order. This is not the time to call anyone’. In my field of work, one has to be persuasive, without ego and chatty,” says Aakash, who has authored a book titled ‘Verbal and Non-Verbal Communication’, which imparts lessons in communication skills.

Fifteen minutes into the conversation and you realise that Aakash indeed loves talking. He regales you with the tales of follies and foibles of his own and those of his guests.
However, Aakash’s job does not end with getting consent of the guest for the show — he also manages the logistics of the guest’s travel to the studio and ensures that they get a warm welcome. The type of car he sends to pick the guest depends on his status, he says.

“Once when I was at DD News, I invited a former diplomat to the studio. He was furious when he arrived. Later, our driver told me that the car had broken down on the way and he had to ask the guest to push the car,” says Aakash, adding that he often faces the music for others’ mistakes. “I am responsible if the guest is unhappy about something, if he does not speak well on the show or does not arrive on time,” he says.

That is not the only job hazard. Aakash has to guard against cases of mistaken identity too. To cite an example, he refers to the mix-up that happened a few years ago on BBC News 24 channel, when a man called Guy Goma, a graduate from Congo, appeared on the news channel in place of an IT expert.

And then he refers to his own case. “At my previous office, I called former Indian cricketer Chetan Sharma and he agreed. In the evening, to my horror, another Chetan Sharma, also a cricketer, arrived at the studio. I realised I had dialled the wrong number,” laughs Aakash.
There have been occasions, especially during important debates in the Parliament, when he had to virtually push politicians through waiting crowds of cameramen and reporters of other channels into his car parked outside to take them to his studio for the show. “If I don’t do it, my competitor will take them,” he says.

However, the most difficult part of his job, he says, is to cancel a guest for a show. “It happens when we get a better alternative to someone already invited. Then I have to tell blatant lies that the show has been cancelled or the topic has changed. There have been times when I had to cancel guest appointments after the lights and cameras were set up at their homes. In such a situation, I tell them that the satellite connection or the phone line is not working. I am sick of lying now, but I cannot help it; the show must go on,” he says.

Aakash says that he often get requests from marginalised or out-of-news politicians for an invitation to shows on his channel. “But we have a strict criteria for inviting guests — fluency in English is important, though Lalu Prasad Yadav is an exception. Besides, I need to know the views of my guests in advance so that we do not end up with people with similar views. On a day of big incident such as a terrorist attack, what also matters is how far the guest lives from our studio.”

A key requirement of his job is to hunt for fresh faces for various shows. “Many people who were nervous the first time have now decoded television. They love being on air. Some people keep going through their notes till the time they enter the studio,” says Aakash.

He loves his job as it has got him an opportunity to develop personal equation with his famous guests. “If the guest is very important, I personally go to pick him up. Since I am not a reporter, the guest does not fear being quoted and opens up easily. Once I went to pick Mallika Sherawat and I found that contrary to her image, she is a sober, decent and a down-to-earth person,” he says.

Aakash claims he is not in awe of the rich and famous any more but regrets not getting himself photographed with mountaineer Edmund Hillary, when his channel did a show with him.
Aakash, who lives in Noida and is single, says that even his parents are yet to get a hang of what he does on television. “My father often wonders what I get paid so well for,” says Aakash, whose second book on television journalism will be published soon.

May 12, 2012

पाखंडी बाबा और पाखंडी चैनल

(मुकेश कुमार)

ये किसी चमत्कार से कम नहीं था। निर्मल जीत सिंह नरूला नामक जो धोखेबाज़ बाबा तमाम न्यूज़ चैनलों पर काबिज़ होकर जनमानस पर छा गया था और एक संक्रामक रोग की तरह फैलते हुए जनता को दिग्भ्रमित करने में लगा हुआ था, वह महीने भर के अंदर ध्वस्त हो गया। देश के सर्वाधिक टीआरपी रेटिंग वाले दस कार्यक्रमों की सूची में आठ स्थानों पर बिराजने वाला ये फ्रॉड एक पखवाड़े के अंदर ही पचास कार्यक्रमों की सूची में भी जगह पाने के लिए तरसने लगा। वह मज़ाक और लतीफ़ों का पात्र बन गया। जगह-जगह उसके ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज़ हो गईं। लोग खुले आम उसे धोखेबाज़, चार सौ बीस, पाखंडी और जाने क्या-क्या कहने लगे। उसकी निंदा करने वालों की लाइन लग गई। देश भर में अंध श्रद्धा के विरुद्ध आंदोलन चलाने वालों को नई ऊर्जा मिल गई और वे सड़कों पर उतर आए। निर्मल बाबा के पुतले फूँकने लगे, उसकी अर्थियाँ सजाई जाने लगीं और उसे गिरफ़्तार करने की माँगें की जाने लगीं। यही नहीं, उसके भक्तों की फौज भी गायब होने लगी और करोड़ों रुपए का उसका दैनिक संग्रह चंद लाख तक पहुँच गया। और ये चमत्कार हुआ मीडिया की ही बदौलत। जी हाँ उसी मीडिया की बदौलत जिसने उसे बनाया था, प्रतिष्ठित किया था। मनोरंजन के नहीं न्यूज़ के चैनलों ने ये काम किया। हालाँकि ये मूर्तिभंजन स्वेच्छा से नहीं किया गया। उनकी इच्छा तो इस नए बनते अरबपति बाबा से माल लूटने की थी, उसकी काली कमाई में हिस्सेदारी करने की थी। मगर वे फँस गए और जाल से निकलने के लिए उन्हें खुद को बाबा विरोधी दिखाने की ज़रूरत आन पड़ी। अचानक वे अंध विश्वास विरोधी दिखने को मजबूर हो गए। एकदम से प्रगतिशीलता का लबादा उन्होंने ओढ़ लिया और क्रांति की मशाल लेकर निकल पड़े समाज को बदलने के लिए। इस क्रम में उनका दोहरा रवैया भी बेनकाब हो गया। उनकी भूमिका को लेकर भी सवाल उठे, मगर वे निर्लज्जता से उन्हें पचा गए। कुछ चैनलों ने तो फिर भी बेशर्मी नहीं छोड़ी, बल्कि आज भी निर्मल बाबा के पेड कार्यक्रम वैसे ही दिखा रहे हैं, बिना ये बताए कि ये प्रोग्राम नहीं विज्ञापन हैं। लेकिन क्या करें बेचारे। धंधे में मुनाफ़े के लिए कुछ छल-प्रपंच तो करने ही पड़ते हैं।

दरअसल, निर्मल बाबा का चमत्कार किसी अलौकिक शक्ति या सिद्धि ( जो कि होती भी नहीं है) का नहीं पैसे का चमत्कार था। बड़ी ही चतुराई से उसने अपने बिज़नेस मॉडल में चैनलों को खासी अहमियत देते हुए उसे मार्केटिंग-ब्रांडिंग यानी प्रचार का आधार बना लिया। समागम के ज़रिए उसने जो धन उगाही की थी उसके बल पर उसने पैंतीस चैनलों में स्लॉट खरीद लिए और सुबह से शाम तक खुद को दिखाने का बंदोबस्त कर लिया। चैनलों की आत्मा तो कबकी बाज़ार में गिरवी रखी हुई है इसलिए उन्होंने सामाजिक सरोकारों को मारी एक और लात और बाबा से मोटी रकम लेकर उसके फ्रॉड को महिमामंडित करने के अभियान में शामिल हो गए। भारी भीड़ वाले सुनियोजित ढंग से शूट किए गए समागम जब चैनलों पर दिखने लगे तो लोगों को लगा कि निर्मल बाबा सचमुच में चमत्कारी पुरूष है, उसके पास हर समस्या का समाधान है। बस समागम की फीस जमा करो और काम हो गया। बाबा के समाधान भी आसान। गोलगप्पे खाने से लेकर काला पर्स रखने तक हल्के-फुल्के उपायों से किसी पर भी कृपा आनी शुरू हो सकती है। अगर काम हो जाए तो अपनी कमाई का दसवाँ हिस्सा भी बाबा के खाते में जमा करवाओ। यानी लूट ही लूट और उस पर मीडिया की ओर से पूरी छूट। लेकिन बाबा के साथ मुश्किल ये थी कि वे सबको नहीं खरीद सकते थे। सोशल मीडिया में सक्रिय लोगों ने मोर्चा खोल दिया। न्यूज़ चैनलों में न्यूज़ एक्सप्रेस ने सबसे पहले झंडा उठा लिया और फिर शुरू हो गया बाबा का भंडाफोड़। राँची से निकलने वाला प्रभात ख़बर भी तथ्यात्मक रिपोर्ट के साथ इस अभियान का हिस्सा बना तो उसे नई धार मिल गई। इसके बाद कुछ चैनलों को अपनी करतूत पर लाज आने लगी और वे भी बाबा के विरोध में उतरने लगे। स्टार न्यूज़ उतरा और जब उसे टीआरपी मिलती दिखी तो आज तक, इंडिया टीवी, जी न्यूज़ और भी कूद पड़े। ये गिर पड़े तो हर हर गंगे वाली स्थिति थी, इसीलिए निर्मल बाबा के विरोध के बावजूद तमाम चैनल थर्ड आई ऑफ निर्मल बाबा भी दिखाते रहे और दिखा रहे हैं। न्यूज़ एक्सप्रेस न इसे पहले दिखा रहा था और न ही बाद में प्रलोभनों के बावजूद दिखाने की सोची। स्टार न्यूज़ ने ज़रूर ऐलान किया कि बारह मई के बाद वह भी नहीं दिखाएगा।

निर्मल बाबा के खिलाफ़ चले इस अभियान ने जहाँ एक ढोंगी बाबा को बेपर्दा कर दिया वहीं न्यूज़ चैनलों के ढोंग से भी नकाब उठा दी। फिर एक बार ये साबित हो गया कि वे पैसे और टीआरपी के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं। अव्वल तो निर्मल बाबा का प्रोग्राम न्यूज़ चैनलों की सामग्री हो ही नहीं सकता था, क्योंकि उसमें न्यूज़ जैसा कुछ भी नहीं है। होने को तो ये धार्मिक या आध्यात्मिक कहे जाने वाले चैनलों की भी सामग्री नहीं थी, क्योंकि ये विशुद्ध अंध विश्वास को बढ़ावा देने वाली, आम लोगों को ठगने वाली और अवैज्ञानिक सोच को फैलाने वाली थी। मगर न्यूज़ चैनलों की परिभाषा में तो ये कतई नहीं आती। दूसरे, ये एक पेड प्रोग्राम था, जिसे न्यूज़ चैनल इस तरह दिखा रहे थे और आज भी दिखा रहे हैं मानो इसका निर्माण वे खुद कर रहे हों और इसमें किसी व्यक्ति या संस्था के प्रचार जैसा कुछ नहीं हो। तीसरे, दो-एक चैनलों को छोड़कर बाक़ी ने या तो बाबा का विरोध नहीं किया या फिर नकली विरोध किया। कुछ ने तो उसे सही ठहराने वाली सामग्री भी जमकर दिखाई। यानी पाखंडी बाबा को दिखाने वाले ज़्यादातर चैनल भी पाखंडी थे। उन्हें देश और समाज से कुछ भी सरोकार नहीं था, उनके लिए तो सबसे बड़ा रूपैया रहा।

इस सबके बावज़ूद निर्मल बाबा प्रकरण में एक बार फिर ये साबित हुआ कि दर्शक अच्छी चीज़ें देखना चाहते हैं बशर्ते अच्छे विकल्प उन्हें दिए जाएं। ये धारणा सरासर ग़लत है कि उन्हें मनोहर कहानियाँ ही चाहिए। अगर अंध विश्वास से भरी सामग्री वे देख रहे थे तो इसीलिए कि उन्हें अंध विश्वास विरोधी चीज़ें दिखलाई ही नहीं जा रही थीं। अगर ऐसा न होता तो जैसे ही बाबा की पोल खोलने का अभियान चैनलों पर चलना शुरू हुआ, दर्शकों की भीड़ न लग गई होती। यही नहीं, निर्मल बाबा के बाद चैनलों ने दूसरे बाबाओं की तरफ भी रुख़ करना शुरू कर दिया है और इससे ये बात और पुष्ट होती है कि लोगों को बाबाओं की पोल खुलते देखने में भी मज़ा आ रहा है। अगर ये सिलसिला जारी रहा तो अंध विश्वास के ख़िलाफ़ एक नई मुहिम छिड़ सकती है। इसमें भी संदेह नहीं कि टेलीविज़न बहुत ही शक्तिशाली माध्यम है और अगर ये सकारात्मक दिशा में काम करना शुरू कर दे तो बहुत ही अच्छे नतीजे निकल सकते हैं। लेकिन मौजूदा हालात को देखकर अफसोस के साथ यही कहना पड़ता है कि ऐसा होता नहीं दिखता।

और अंत में-

फिल्म अभिनेता आमिर ख़ान के सात टीवी चैनलों पर एक साथ प्रसारित होने वाले शो सत्यमेव जयते ने कई न्यूज़ चैनलों को उन्मादग्रस्त कर दिया है। उन्हें लग रहा है कि सामाजिक समस्याओं में उनके जैसे स्टार का हस्तक्षेप क्रांतिकारी साबित होगा। वे यहाँ तक उम्मीद करने लगे हैं कि इससे देश ही बदल जाएगा। ज़ाहिर है ये उनकी नासमझी और अपरिपक्वता है जो गंभीर मसलों के सरलीकृत समाधानों के प्रति उनमें उतावलापन और अंधविश्वास पैदा कर देता है। ये बाज़ार के बारे में उनकी अधकचरी समझ को भी ज़ाहिर करता है। वे इस तथ्य की अनदेखी कर रहे हैं कि इस शो की मार्केटिंग में ही छह करोड़ खर्च किए गए हैं और प्रायोजकों से नब्बे करोड़ की रकम पहले से ही इकट्ठी कर ली गई है। विज्ञापनों की दर दस लाख प्रति दस सेकेंड रखी गई है जो कि अब तक की सबसे ज़्यादा है। साफ है कि सरोकार की आड़ में कारोबार हो रहा है। ये सही है कि आमिर ख़ान की पहचान एक संवेदनशील अभिनेता के तौर पर बन गई है मगर चैनल भूल जाते हैं या भूल जाना बेहतर समझते हैं कि आमिर ख़ान एक एक्टिविस्ट के रूप में अपनी इमेज बिल्डिंग में ज़्यादा दिलचस्पी रखते हैं और समस्याओं के समाधान में कम। भ्रूण हत्याओं पर उनका पहला एपिसोड भावनात्मक उभार पैदा करके सक्रियतावाद का आभास ज़रूर पैदा करता है मगर असलियत में समस्या के समाधान की दिशा में एक क़दम भी आगे नहीं ले जाता। इससे फिर यही साबित होता है कि आमिर ऐसे कार्यक्रम करके अपनी एक्टिविस्ट वाली छवि को और पुख़्ता करना चाहते हैं जो कि इसके पहले भी वे एक नहीं कई बार वे ज़ाहिर कर चुके हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन के सवाल पर उनके रवैये से सब वाकिफ़ हैं ही। ब्रांडिंग के लिए वे तरह-तरह के फंडे आज़माते रहे हैं और इनमें आम आदमी से कनेक्ट होना एक बड़ा मार्केटिंग हथकंडा रहा है। ये भी नहीं भूलना चाहिए कि खुद टीवी चैनल भी उनके ज़रिए इंटरटेनमेंट का एक नया मसाला-फार्मूला गढ़ रहे हैं और उनका मुख्य मक़सद भी टीआरपी और रेवेन्यू है न कि जनचेतना को जागृत करना। ये प्रवृत्ति टेलीविज़न में हावी सेलेब्रिटीवाद की भी मिसाल है। टीवी चैनल किसी सेलेब्रिटी को देखते ही दीवाने हो जाते हैं, लार टपकाने लगते हैं। वे बिकाऊ माल समझे जाते हैं इसलिए उन पर और उनकी गतिविधियों पर केंद्रित कार्यक्रम बनाए जाने लगते हैं। इस तरह के ज़्यादातर कार्यक्रम तारीफ़ों से भरे होते हैं, उनमें आलोचना का तत्व न के बराबर ही होता है। ऐसी सेलेब्रिटी भक्ति भ्रमों को बढ़ाने में मददगार ही साबित होती है। ज़्यादा नहीं कुछ हफ्ते इस कार्यक्रम को चलने दीजिए, सबको समझ में आने लगेगा कि ये सत्यमेव जयते नहीं बाज़ारमेव जयते है।

(लेखक अरसे से टीवी पत्रकारिता कर रहे हैं। फिलहाल वे राष्ट्रीय हिंदी न्यूज़ चैनल न्यूज़ एक्सप्रेस के प्रमुख हैं। उनसे mukeshkumar@deshkaal.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

May 11, 2012

महज एक वैकल्पिक माध्यम नहीं

− बालेन्दु शर्मा दाधीच

ऐसा रूपांतरकारी परिवर्तन सदी में एकाध बार ही होता है। सोलहवीं सदी के बाद कई सदियों तक जनसंचार और जनसूचना माध्यम के रूप में प्रिंट मीडिया का एकाधिकार रहा। स्थिर, स्थायी, निश्चिंत, अपरिवर्तित भाव से बढ़ता रहा प्रिंट मीडिया। पिछली सदी के उत्तरार्द्ध में जाकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने उसकी शांति भंग की। एक दूसरे के लिए खतरा बनने की बजाय उन्होंने पारस्परिक सहजीवन को अनुकूल पाया और साथ−साथ रहते−बढ़ते रहे। दोनों की अलग−अलग शैलियां, अलग−अलग प्रस्तुति और अलग−अलग प्रभाव। अरसे बाद मीडिया की निश्चलता में दूसरा बड़ा उद्वेलन आया है− न्यू मीडिया के जरिए। न्यू मीडिया, यानी ऐसा मीडिया जिसकी विषय−वस्तु के निर्माण या प्रस्तुति में कंप्यूटर या अन्य डिजिटल यंत्रों की कोई न कोई भूमिका है। 1995 में आम लोगों तक इंटरनेट के प्रसार के बाद से न्यू मीडिया का प्रभाव निरंतर बढ़ता चला गया है।

मीडिया में तकनीक के दखल से आया यह उद्वेलन न सिर्फ पहले से अलग है बल्कि इसके दूरगामी निहितार्थ हैं। यह विषय वस्तु (कॉन्टेंट) के स्वरूप, प्रस्तुति तथा सूचनाओं के डिलीवरी−मैकेनिज्म को ही नहीं बल्कि मीडिया की बुनियादी अवधारणा को भी बदलने की क्षमता रखता है क्योंकि न्यू मीडिया की मूल प्रकृति इंटरएक्टिव है। पाठक के साथ सीधा संपर्क इसकी बुनियादी विशेषता है। पारंपरिक मीडिया के 'एक प्रकाशक, अनेक पाठक' वाले एकाधिकारवादी स्वरूप को न्यू मीडिया के 'अनेक प्रकाशक, अनेक पाठक' वाले अपेक्षाकृत लोकतांत्रिक स्वरूप से बड़ी चुनौती मिल रही है। ऐसी चुनौती जो न रेडियो ने दी थी न टेलीविजन ने, और जो मीडिया को आमूलचूल बदल सकती है। लेकिन सिर्फ चुनौती ही क्यों, मीडिया के लिए यह एक बहुमूल्य अवसर भी तो है। अपना

विकास व विस्तार करने का, तकनीक के अधिक करीब आने का, पाठकों से सीधे संवाद का और अपने आर्थिक साम्राज्य को फैलाने का भी। भविष्य की ओर दृष्टि रखने वाला कोई भी संस्थान या व्यक्ति इस रोमांचक, निस्सीम और त्वरित माध्यम से असंबद्ध नहीं रह सकता।

सुधीजनों को इस चुनौती का अहसास है। प्रिंट और टेलीविजन की जकड़बंदी से बाहर निकलकर डिजिटल माध्यम की संभावनाओं को अपनाने की होड़ शुरू भी हो गई है। तभी तो बीबीसी अपने लाखों घंटों के टेलीविजन कार्यक्रमों का वेबीकरण करने में जुटा है। तभी तो टाइम्स घराने से लेकर छोटीकाशी (बीकानेर से संचालित समाचार पोर्टल) तक इंटरनेट पर आ गए हैं। तभी तो सीएनएन−आईबीएन से लेकर एनडीटीवी और टाइम्स नाऊ तक आम लोगों को सिटीजन रिपोर्टर बनाने में जुटे हैं। तभी तो गूगल पचासों लाख पुस्तकों को डाउनलोड करने और सर्च करने लायक बनाने के लिए उनके डिजीटाइजेशन में जुटा है। तभी तो एक्सप्रेसइंडिया से लेकर टाइम्स समूह और सीएनएन से लेकर डीएनए तक ने अपने पाठकों को बेखौफ टिप्पणियां करने के लिए ब्लॉगिंग का मंच मुहैया करा दिया है।

सैंकड़ों साल का बुजुर्ग मीडिया अचानक नए जमाने की तकनीकी शक्ति से ऊर्जावान होकर छैल−छबीला बन रहा है। यह संक्रमण का एक महत्वपूर्ण दौर है जिसमें भागीदारी न करना अदूरदर्शितापूर्ण ही नहीं, घातक भी हो सकता है। बीबीसी की न्यू मीडिया शाखा के प्रमुख एश्ले हाईफील्ड के शब्दों में− पांच साल बाद सिर्फ वही मीडिया संस्थान बचेंगे जो तेज होंगे। प्रसारकों को उसके लिए अभी से तैयार होना होगा− अपने डिजिटल अधिकार सुरक्षित करने होंगे, समाचार संकलन ब्रांड तैयार करने होंगे, अभिलेखीय सामग्री को (वेबयुग के लिए) तैयार करना होगा और तकनीक में निवेश करना होगा− अन्यथा उन्हें चंद वर्षों में डिजिटल डायनासोर बन जाने के लिए तैयार रहना चाहिए।

भारतीय संदर्भों में शायद यह बात अतिशयोक्ति लगेगी क्योंकि हमारे यहां प्रिंट, टेलीविजन और रेडियो, तीनों ही क्षेत्रों में इन दिनों लगभग उसी तरह विस्तार हो रहा है जैसे कि न्यू मीडिया में। उधर अमेरिका और इंग्लैंड में प्रिंट व टेलीविजन के लिए न्यू मीडिया एक बड़ी चुनौती बन चुका है और अमेरिकी ऑडिट ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के मुताबिक न्यूयॉर्क टाइम्स, न्यूयॉर्क पोस्ट, न्यूज−डे, वाशिंगटन पोस्ट आदि के सर्कुलेशन में महत्वपूर्ण गिरावट आई है। उधर अखबारों की वेबसाइटों के पाठकों में बढ़ोत्तरी हुई है। क्या यह पारंपरिक से न्यू मीडिया या ऑफलाइन से ऑनलाइन की ओर हो रहे स्थानांतरण का संकेत है? क्या यह बात भारतीय परिस्थितियों में भी लागू होती है? फौरी तौर पर तो शायद नहीं क्योंकि मीडिया के ट्रेंड्स के मामले में हम पश्चिम से कुछ वर्ष पीछे चलते रहे हैं।

पश्चिमी देशों में समाज के निम्नतम स्तर, यानी मोहल्लों तक के अखबार निकल रहे हैं लेकिन यह ट्रेंड अब तक भारत नहीं पहुंचा है और उधर पश्चिम में इसकी विदायी की तैयारी भी हो गई है। लेकिन न्यू मीडिया की बात अलग है। वह भारत में मौजूद तो है ही, शुरूआती धीमी प्रगति के बाद अब कंप्यूटर व इंटरनेट के प्रसार के दम पर पंख फैलाने की तैयारी कर रहा है। भारत में इंटरनेट प्रयोक्ताओं की संख्या करीब 15 करोड़ हो गई है। इसमें तेजी से हो रही वृद्धि आने वाले दिनों का संकेत है।

ऐसे में क्या न्यू मीडिया को वैकल्पिक मीडिया मानकर उससे असंबद्ध रहना संभव है? शायद नहीं क्योंकि न्यू मीडिया वस्तुतः बदलते समय का माध्यम है और यह अन्य सूचना व संचार माध्यमों से अलग, विमुख या स्वतंत्र किस्म की छोटी−मोटी परिघटना नहीं है। यह अब तक के सभी मीडिया स्वरूपों से विशाल, तकनीक−समृद्ध, शक्तिशाली और व्यापक माध्यम है जिसमें पारंपरिक मीडिया

को समाहित कर लेने तक की क्षमता और संभावना दोनों है। यह कोई शत्रुतापूर्ण शक्ति नहीं बल्कि मैत्रीपूर्ण माध्यम है और सबके लिए उपलब्ध है, पुराने मीडिया के लिए भी।

सूचनाओं को सीमाओं से मुक्त करने वाले हस्तक्षेप का नाम ही न्यू मीडिया है। वह विभिन्न माध्यमों को साथ लाने, उनके बीच अंतर−संबंध विकसित करने, उन्हें परिवर्द्धित−समृद्ध करने और नई संभावनाओं से जोड़ने वाला माध्यम है। उसका कलेवर इतना विशाल है कि वह एक ही स्थान पर अनेक पारंपरिक मीडिया को साथ आने, अपनी पहचान बनाए रखते हुए अभिव्यक्ति को व्यापक बनाने का अवसर देता है। एक ही वेब पेज पर खबर, उससे जुड़े वीडियो, ऑडियो, तसवीरों, पुरानी खबरों की कडि़यों, पाठकीय टिप्पणियों व चर्चाओं आदि को रखने की उसकी क्षमता सिद्ध करती है कि वह वैकल्पिक माध्यम से कहीं बड़ी चीज़ है। यह क्षमता पुराने मीडिया में नहीं थी क्योंकि प्रिंट, रेडियो और टेलीविजन की विषय−वस्तु अलग−अलग माध्यमों से ही प्रसारित होती थी।

एक खुला और काफी हद तक नियंत्रणमुक्त माध्यम होने के नाते न्यू मीडिया की विषयवस्तु में गुणवत्ता, वजन, साख, प्रामाणिकता आदि के मामले में कुछ सीमाएं हैं। लेकिन फिर उसने मीडिया में सदियों से प्रचलित इस अवधारणा को भी पहली बार खंडित करने का दुस्साहस किया है कि विषयवस्तु (कॉन्टेंट) ही सबकुछ है (कॉन्टेंट इज किंग)। वह सिर्फ खबरों तक सीमित नहीं है बल्कि उसका एक तकनीकी तथा इंटरएक्टिव पहलू भी है। उसकी बुनियादी अवधारणा खबर और सूचना से कहीं व्यापक है। एलेक्सा के ताजा आंकड़ों के अनुसार दुनिया की शीर्ष 25 वेबसाइटों में सिर्फ दो-तीन ही समाचार, लेख या अन्य विषय−वस्तु पर आधारित हैं।

फेसबुक, यू-ट्यूब, गूगल, ट्विटर और विकीपीडिया के दौर का मीडिया सीमाओं में घिरे रहने के लिए नहीं है, बल्कि सीमाएं खत्म करने की दिशा में बढ़ रहा है।

हम इतिहास के उस दौर में हैं जहां खबरों और सूचनाओं के केंद्रीकृत नियंत्रण की व्यवस्था खतरे में है। शेन बोमैन और क्रिस विलिस के शब्दों में कहें तो खबरों के चौकीदार के रूप में पारंपरिक मीडिया की भूमिका को सिर्फ तकनीक या प्रतिद्वंद्वियों से ही खतरा नहीं है बल्कि उसके अपने उपयोगकर्ताओं से भी है। क्योंकि न्यू मीडिया ने उपयोगकर्ता को सप्लायर भी बना दिया है। मीडिया के लिए इस अजीबोगरीब युगांतरकारी संक्रमण के माहौल में आम आदमी से जुड़ना और अपना स्वरूप बदलना शायद एक विकल्प नहीं बल्कि अनिवार्यता हो गया है।

May 10, 2012

BA (Hons) Journalism, Delhi University Syllabus (OLD SYLLABUS)

SEMESTER I 
C1 Introduction to Journalism 

Unit 1 - Understanding News Ingredients of news News: meaning, definition, nature The news process: from the event to the reader (how news is carried from event to reader) Hard news vs. Soft news, basic components of a news story Attribution, embargo, verification, balance and fairness, brevity, dateline, credit line, byline. 

Unit 2 - Different forms of print-A historical Perspective Yellow journalism Penny press, tabloid press Language of news- Robert Gunning: Principles of clear writing Rudolf Flesch formula- skills to write news 

Unit 3 - Understanding the structure and construction of news Organising a news story, 5W‘s and 1H, Inverted pyramid Criteria for news worthiness, principles of news selection Use of archives, sources of news, use of internet

Unit 4 – Different mediums-a comparison Language and principles of writing: Basic differences between the print, electronic and online journalism Citizen journalism 

Unit 5 - Role of Media in a Democracy Responsibility to Society Press and Democracy Contemporary debates and issues relating to media Ethics in journalism 

Readings: - 
Bruce D. Itule and Douglas A. Anderson. News writing and reporting for today’s media; McGraw Hill Publication, 2000. - M.L. Stein, Susan Paterno& R. Christopher Burnett. News writer’s Handbook: An Introduction to Journalism; Blackwell Publishing,2006. - George Rodmann. Mass Media in a Changing World; Mcgraw Hill Publication,2007. - Carole Flemming and Emma Hemmingway. An Introduction to Journalism; Vistaar Publications,2006. - Richard Keeble. The Newspaper’s Handbook; Routledge Publication,2006.

 C2 Introduction to Media and Communication 

Unit I Media and Everyday Life Mobile phones, Television, Ring tones, Twitter The Internet‐ discussion around media and everyday life Discussions around mediated and non mediated communication 

Unit II Communication and Mass Communication Forms of Communication, Levels of Communication Mass Communication and its Process Normative Theories of the Press Media and the Public Sphere 

Unit III Mass Communication and Effects Paradigm Direct Effects; Mass Society Theory, Propaganda Limited Effects; Individual Difference Theory, Personal Influence Theory 

Unit IV Cultural Effects and the Emergence of an Alternative Paradigm Cultural Effects: Agenda Setting, Spiral of Silence, Cultivation Analysis Critique of the effects Paradigm and emergence of alternative paradigm 

Unit V Four Models of Communication Transmission models Ritual or Expressive models Publicity Model Reception Model 

Readings
Michael Ruffner and Michael Burgoon, Interpersonal Communication (New York, Holt, Rinehart and Winston 1981, 21‐34; 59‐72 John Fiske, Introduction to Communication Studies, (Routledge 1982), pp 1‐38 Dennis McQuail, Mass Communication Theory, (London, Sage, 2000), pp 1‐11; 41‐54; 121‐133 (fourth Edition) Baran and Davis, Mass Communication Theory, Indian Edition, (South West Coengate Learning, 2006) pages 42‐64; 71‐84; 148‐153; 298‐236 Kevin Williams, Understanding Media Theory, (2003), pp.168‐188 Robin Jeffrey, Cell Phone Nation: How Mobile Phones have Revolutionized Business, Politics and Ordinary Life in India. New Delhi: Hachette (2013) Ravi Sundaram, The Art of Rumour in the Age of Digital Reproduction, The Hindu, August 19, 2012 http://www.thehindu.com/news/national/the-art-of-rumour-in-the-age-of-digitalreproduction/article3792723.ece (Unit 1) ShohiniGhosh, ―Inner and Outer Worlds of Emergent Television Cultures,‖ in No Limits: Media Studies from India, Ed. Ravi Sundaram. New Delhi: Oxford (2013). 

 SEMESTER II 
C3 Reporting and Editing for Print 

 UNIT 1 Covering news Reporter- role, functions and qualities General assignment reporting/ working on a beat; news agency reporting. Covering Speeches, Meetings and Press Conferences Covering of beats- crime, courts, city reporting, local reporting, MCD, hospitals, health, education, sports; 

UNIT 2 Interviewing/Types of news leads Interviewing: doing the research, setting up the interview, conducting the interview News Leads/intros, Structure of the News Story–Inverted Pyramid style; Lead: importance, types of lead; body of the story; attribution, verification Articles, features, types of features and human interest stories, leads for features, difference between articles and features. 

UNIT 3 The Newspaper newsroom Newsroom, Organizational setup of a newspaper, Editorial department Introduction to editing: Principles of editing, Headlines; importance, functions of headlines, typography and style, language, types of headline, style sheet, importance of pictures, selection of news pictures Role of sub/copy-editor, News editor and Editor, chief of bureau, correspondents Editorial page: structure, purpose, edits, middles, letters to the editor, special articles, light leader Opinion pieces, op. Ed page 

UNIT 4 Trends in sectional news Week-end pullouts, Supplements, Backgrounders columns/columnists 

UNIT 5 Understanding media and news Sociology of news: factors affecting news treatment, paid news, agenda setting, pressures in the newsroom, trial by media, gatekeepers. Objectivity and politics of news Neutrality and bias in news

Readings 
The Art of Editing, Baskette and Scissors, Allyn and Bacon Publication Dynamics of Journalism and Art of Editing, S.N. Chaturvedi, Cyber Tech Publications News Writing and Reporting for Today‘s Media, Bruce Itule and Douglas Anderson, McGraw Hill Publication Modern newspaper practice: A primer on the press, F.W. Hodgson, Focal Press Reporting for the Media, Fred Fedler and John R. Bender, Oxford University Press The Newspaper‘s Handbook, Richard Keeble, Routledge Publication Principles of Editorial Writing, MacDougall and Curtis Daniel, W.C. Brown Co. Publishers News Reporting and Writing. Mencher, Melvin. MC Graw Hill, NY. 2003 Mass Communication Theory, Denis McQuail, Sage Publications Reporting for the Print media‗. (2nd ed) . ;Fedler, Fred. Harcout, Bruce Jovanovich Inc., 

 Internal Assessment: Internal assessment may be based on covering the beats and writing reports / interviewing personalities, celebrities etc. Exercises on editing copies, writing headlines, writing features, structuring a dummy editorial page, writing editorials etc. Discussions on current affairs, tests, debates and tests may be held regularly.

C4 Media and Cultural Studies 

 Unit I Understanding Culture Mass Culture, Popular Culture, Folk Culture Media and Culture

Unit II- Critical Theories Frankfurt School, Media as Cultural Industries Political Economy, Ideology and Hegemony 

Unit III Representation Media as Texts Signs and Codes in Media Discourse Analysis Genres Representation of nation, class, caste and gender issues in Media 

Unit IV Audiences Uses and Gratification Approach Reception Studies Active Audiences Women as Audiences Sub Cultures; Music and the popular, Fandom 

Unit V Media and Technologies Folk Media as a form of Mass Culture, live performance; Audience in live Performance Media technologies; Medium is the Message; Technological Determinism; New Media and Cultural forms 

Readings
AS Media Studies: An Essential Introduction Edited by Philip Rayner, Peter Wall and Stephen Kruger, Routledge (Covers Unit II, III, IV and V) John Fiske, 1982, Introduction to Communication Studies, Routledge (Covers Unit II, Ideology and Meanings and Unit III Signs and codes ) Dennis McQuail, 2000, (fourth Edition) Mass Communication Theory, London, Sage (Covers Unit IV, Media Technologies) Baran and Davis, Mass Communication Theory (covers Unit II, III and IV) John Storey. Cultural Theory and Popular Culture: An Introduction. London: Pearson Longman. 2009 Kevin Williams, Understanding Media Theory (Covers Unit II, III and IV) Media Cultures by Nick Stevenson, 2002, Second Edition, SAGE James Clifford, Tony Benett, Raymond Williams, Stuart Hall, John Storey Short Extracts from writings by Adorno and Horkheimer, Radway, Roland Barthes, Mcluhan Parmar S. Traditional Folk Media in India, 1975, New Delhi, Geka Books 

SEMESTER III 
C5 Introduction to Broadcast Media 

 Unit 1 - Basics of Sound Concepts of sound-scape, sound culture Types of sound-Sync, Non-Sync, Natural sound, Ambience Sound Sound Design-Its Meaning with examples from different forms Sound recording techniques Introduction to microphones Characteristics of Radio as a medium

Unit 2 - Basics of Visual What is an image, electronic image, television image Digital image, Edited Image(politics of an image) What is a visual?(still to moving) Visual Culture Changing ecology of images today Characteristics of Television as a medium 

Unit 3 - Writing and Editing Radio News Elements of a Radio News Story: Gathering, Writing/Reporting. Elements of a Radio News Bulletins Working in a Radio News Room Introduction to Recording and Editing sound. (Editing news based capsule only). 

Unit 4 - Writing and Editing Television News Basics of a Camera- (Lens & accessories) Electronic News Gathering (ENG) & Electronic field Production (EFP) (Concept) Visual Grammar – Camera Movement, Types of Shots, Focusing, Visual Perspective. Elements of a Television News Story: Gathering, Writing/Reporting. Elements of a Television News Bulletins Basics of Editing for TV- Basic Soft-wares and Techniques (for editing a news capsule). 

Unit 5- Broadcast News: Critical Issues and Debates Public Service Broadcasters - AIR and DD News - Voice of India? (Analysis of News on National Broadcasters) Changing Character of Television News ( 24 -hrs news format, News Production cycle, News 'Lingo', News 'Formulae' ? News as Event, Performance and Construction. 

Readings
Zettl Herbert, Television Production Handbook. (Pgenos: 20-80, 85-135) Robert c Allen and Annette Hill (Ed- 2004), The Television Reader, Routledge (Pgenos: 10- 40) P.C Chatterjee, Broadcasting in India, New Delhi, Sage 1987(Page nos- 25- 78) The Radio Handbook, by Carrol Fleming, Rout ledge (London & New York 2002) (Pgenos: 47- 105) . Suggested Resources &Documentaries- -News Bulletins in English and Hindi on National and Private channels (as teaching material) -Documentary- ‗The future of Television News.‘ 

C6 History of the Media  

Unit I History of Print Media 10 Lectures Media and Modernity: Print Revolution , Telegraph, Morse Code Yellow Journalism, Evolution of Press in United States, Great Britain and France History of the Press in India: Colonial Period, National Freedom Movement Gandhi and Ambedkar as Journalists and Communicators

Unit II Media in the Post Independence Era 10 Lectures Emergency and Post Emergency Era Changing Readership, Print Cultures, Language Press

Unit III Sound Media 14 Lectures Emergence of radio Technology, The coming of Gramophone Early history of Radio in India History of AIR: Evolution of AIR Programming Penetration of radio in rural India‐Case studies Patterns of State Control; the Demand for Autonomy FM: Radio Privatization Music: Cassettes to the Internet 

Unit IV Visual Media 16 Lectures The early years of Photography, Lithography and Cinema From Silent Era to the talkies Cinema in later decades The coming of Television and the State‘s Development Agenda Commercialization of Programming (1980s) Invasion from the Skies: The Coming of Transnational Television (1990s) Formation of PrasarBharati 

Readings: 
Briggs, A and Burke, P, Social History of Media: From Gutenberg to the Internet, (Polity Press , 2010) (Chapter 2 and Chapter 5) ParthasarthyRangaswami, Journalism in India from the Earliest to the Present Day, (Sterling Publishers, 1989). Jeffrey, Robin, India‘s News Paper Revolution: Capitalism, Politics and the Indian Language Press, (New Delhi, Oxford 2003) Manuel, Peter Cassette Culture page, (Chicago, University of Chicago Press, 1993), 1‐ 32 Chatterjee, P.C, Broadcasting in India page (New Delhi, Sage, 1991) ‐39‐57 Neurath P. ―Radio Farm Forum as a Tool of Change in Indian Villages,” Economic Development of Cultural Change, vol 10, No. 3 (pp 275‐283) David Page and William Crawley, Satellites Over South Asia, (Sage, 2001) Chapter 2, chapter 8 and Chapter 9. Das, Biswajit, “Mediating Modernity: Colonial Discourse and Radio Broadcasting in India,‖ Communication Processes Vol 1: Media and Mediation, B. Bel, B. Das, J. Brower, Vibhodh Parthasarthi, G. Poitevin (Ed.) (Sage 2005) Parthasarthi, Vibhodh, ―Constructing a ‗New Media Market: Merchandising the Talking Machine‖ in Communication Processes Vol 1: Media and Mediation, B. Bel, B. Das, J. Brower, Vibhodh Parthasarthi, G. Poitevin (Ed.) (Sage 2005) Eric Barnouw and Krishnaswamy, Indian Film, (New York, Oxford University press, 1980), 2nd Edition, Chapters "Beginnings," & "Three Get Started," John V. Vilanilam, ―The Socio Cultural dynamics of Indian Television: From SITE to Insight toPrivatisation,‖ in Television in Contemporary Asia by David French and Michael Richards (Ed) (Sage, 2000). Elen McDonald ―The modernizing of communication: Vernacular Publishing in Nineteenth Century Maharashtra‖ Asian Survey, 8‐7, (1968) pp 589‐606 Francis Robinson (1993) Technology and Religious change: Islam and the impact of Print; Modern Asian Studies, Vol 27, No. 1 (Feb) pp. 229‐251. Seminar Issue October 1997, Indian Language Press G.N.S Raghavan, Early years of PTI, PTI story: Origin and Growth of Indian Press, (Bombay, Press Trust of India, (1987), 92‐119 Melissa Butcher Transnational Television, Cultural Identity and Change, (New Delhi, Sage, 2003) 49‐77 V. Ratnamala, ambedkar and media - http://roundtableindia.co.in/index.php?option=com_content&view=article&id=4992:ambed kar-and-media&catid=119:feature&Itemid=132 Hindi Dalit Literature and the Politics of Representation by Sarah Beth Hunt (New Delhi: Routledge), 2014; pp 264. 

Topics for Student Presentations 
1. A comparative study of a Community Radio project and any of AIR‘s Local Radio stations. 
2. A case study of radio programmes like Faujibhaiyonkeliyeand behnokakaryakramand kutchmahila radio
 3. Trace the transformation of certain traditional musical genres like devotional music, ghazals and folk songs with the advent of cassette technology. 3. Compare the history of Cinema with the history of other visual media. 
4. Do a visual presentation on cartoons that appeared in Indian Newspapers during the period of Emergency and the debate around censorship of media by the Indian state. 
5. Presentations on the importance of archiving. The state of archives of Indian cinema, News papers, music and photographs.
 6. A discussion on digital archives.

C7 Advertising and Public Relations  

Unit 1-Introduction to Advertising Meaning and history Advertising Importance and Functions a) Advertising as a tool of communication, b) Role of Advertising in Marketing mix, PR Advertising Theories and Models-AIDA model, DAGMAR Model,Maslow‘s Hierarchy Model, communication theories applied to advertising Types of advertising and New trends Economic,cultural, Psychological and Social aspects of advertising Ethical & Regulatory Aspects of Advertising-Apex Bodies in Advertising-AAAI, ASCI and their codes. 

Unit 2- Advertising through Print, electronic and online media Types of Media for advertising Advertising Objectives, Segmentation, Positioning and Targeting Media selection, Planning, Scheduling Marketing Strategy and Research and Branding Advertising department vs. Agency-Structure, and Functions Advertising Budget Campaign Planning, Creation and Production 

Unit-3 Public Relations-Concepts and practices Introduction to Public Relations Growth and development of PR Importance, Role and Functions of PR Principles and Tools of Public relations Organisation of Public relations: In house department vs consultancy. PR in govt. and Private Sectors Govt‘s Print, Electronic, Publicity, Film and Related Media Organizations 

Unit 4-PR-Publics and campaigns Research for PR Managing promotions and functions PR Campaign-planning, execution, evaluation Role of PR in Crisis management Ethical issues in PR-Apex bodies in PR- IPRA code - PRSI,PSPF and their codes. 

Unit 5 – Social Media Marketing Social Media Technologies and Management Inetgrated Marketing Communication Developing Social Networks Social Media Strategies, Tactics and Ethics Social Media Tools Measurement Strategies and ROI 

List of Projects 
1. Design an ad copy for a product 
2. Script writing for electronic media ( Radio jingle, TV Commercial)
3 Planning & Designing advertising campaigns
4. Critical evaluation of advertisements
5. Writing a press release. 
6. Planning and designing PR campaign
7. Assignment on crisis management 

Readings 1. David Ogilvy, Ogilvy on Advertising,Pan/Prion Books 2. Frank Jefkins,Advertising Made Simple, Rupa& Co. 3. Chunawalla , Advertising Theory And Practice, Himalaya Publishing House 4. JethwaneyJaishri, Advertising, Phoenix Publishing House 5. Jefkins Frank Butterworth, Public Relation Techniques, Heinmann Ltd. 6. Heath Robert L, Handbook of Public Relations, Sage Publications, 7 .Dennis L. Wilcose& Glen T, Public Relations, Pearson 8. Cutlip S.M and Center A.H., Effective Public Relations, Prentice Hall 9. Kaul J.M., NoyaPrakash, Public Relation in India, Calcutta 

SEMESTER IV 
C8 Introduction to New Media 

Unit 1 Key Concepts and Theory Defining new media, terminologies and their meanings – Digital media, new media, online media et al.; Information society and new media, Technological Determinism, Computermediated-Communication (CMC), Networked Society. 

Unit 2 Understanding Virtual Cultures and Digital Journalism Internet and its Beginnings, Remediation and New Media technologies, Online Communities, User Generated Content and Web 2.0, Networked Journalism, Alternative Journalism; Social Media in Context, Activism and New Media 

Unit 3 Digitization of Journalism Authorship and what it means in a digital age, Piracy, Copyright, Copyleft and Open Source, Digital archives, New Media and Ethics 

Unit 4 Overview of Web Writing Linear and Non-linear writing, Contextualized Journalism, Writing Techniques, Linking, Multimedia, Storytelling structures 

Unit 5 Visual and Content Design Website planning and visual design, Content strategy and Audience Analysis, Brief history of Blogging, Creating and Promoting a Blog. 

Suggested Readings: Vincent Miller. Understanding digital culture. Sage Publications, 2011. Lev Manovich. 2001. ―What is New Media?‖ In The Language of New Media. Cambridge: MIT Press. pp. 19-48. Siapera, Eugenia. Understanding new media. Sage, 2011. Introduction. Baym, Nancy K. Personal Connections in the Digital Age. Polity, 2010. Chapter 3. Goldsmith, Jack, and Tim Wu. 2006. Who Controls the Internet? Illusions of Borderless World. Oxford University Press US. O‘Reilly, Tim. (2005). What is web 2.0: Design patterns and business models for the next generations software. Oreilly.com, retrieved from http://oreilly.com/web2/archive/whatis web-20.html Grossman, ―Iran Protests: Twitter, the Medium of the Movement‖ Lemann, Nicholas. 2006. Amateur Hour: Journalism without Journalists. The New Yorker, August 7. Available at http://www.newyorker.com/archive/2006/08/07/060807fa_fact1 Xiang, Biao. 2005. Gender, Dowry and the Migration System of Indian Information Technology Professionals. Indian Journal of Gender Studies 12: 357-380.

C9 Development Communication

UNIT 1 Development: Concept, concerns, paradigms Concept of development Measurement of development Development versus growth Human development Development as freedom Models of development Basic needs model Nehruvian model Gandhian model Panchayati raj Developing countries versus developed countries UN millennium dev goals 

UNIT 2 Development communication: Concept and approaches Paradigms of development: Dominant paradigm, dependency, alternative paradigm Dev comm. approaches – diffusion of innovation, empathy, magic multiplier Alternative Dev comm. approaches: Sustainable Development Participatory Development Inclusive Development Gender and development Development support comm. – definition, genesis, area woods triangle

UNIT 3
Role of media in development Mass Media as a tool for development Creativity, role and performance of each media-comparative study of pre and post liberalization eras Role, performance record of each medium- print, radio, tv, video, traditional media Role of development agencies and NGOs in development communication Critical appraisal of dev comm. programmes and govt. schemes: SITE, KrishiDarshan, Kheda, Jhabua, MNREGA; Cyber media and dev – e-governance, e chaupal, national knowledge network, ICT for dev narrow castingDevelopment support communication in India in the areas of: agriculture, health & family welfare, population, women empowerment, poverty, unemployment, energy and environment, literacy, consumer awareness, Right to Information (RTI). 

UNIT 4 Practising development communication Strategies for designing messages for print Community radio and dev Television programmes for rural india (KrishiDarshan) Using new media technologies for development. Development Journalism and rural reporting in India 

UNIT 5 Rural Journalism Information needs in rural areas; Use of traditional media for development in rural areas; Rural newspapers; Critical appraisal of mainstream media‘s reportage on rural problems and issues; Specific features of tribal society; Information needs in tribal setting; Critical appraisal of mainstream media‘s reportage on tribal problems and issues; 

Suggested Readings: Rogers Everett M : Communication and Development- Critical Perspective, Sage, New Delhi, 2000 SrinivasR.Melkote& H. Leslie Steeves: Communication For Development In The Third World, Sage Publications. Belmont CA : Technology Communication Behaviour, Wordsworth Publication, New Delhi, 2001. Dr. Anil Kumar : Mass Media and Development Issues, BhartiPrakashan, Upadhyay Varanasi, 2007. UNDP : Human Development Report (published every year), Oxford University Press, New Delhi. World Bank : World Development Report (published every year) Oxford University Press, New Delhi. Wilbur Schramm : Mass Media and National Development- the role of information in developing countries, UNESCO/ Stanford University Press, 1964. AmartyaSen : Development as freedom, Alfred A Knopf, New York, 1999. DayaThussu : Media on the move: Global flow and contra flow: Routledge, London, 2006. D V R Murthy : Development Journalism, What Next? Kanishka Publication, New Delhi, 2007. Ghosh&Pramanik : Panchayat System in India, Kanishka Publication, New Delhi, 2007. ShivaniDharmarajan : NGOs as Prime Movers, Kanishka Publication, New Delhi, 2007. What Do We Mean By Development: An Article by Nora C Quebral in International Development Review, Feb, 1973, P-25. Modern Media in Social Development : Harish Khanna. \

C10 Media Ethics and the Law 

Unit-I Ethical Framework And Media practice Freedom of expression (Article 19(1)(a) and Article 19(1)2) Freedom of expression and defamation- Libel and slander Issues of privacy and Surveillance in Society Right to Information Idea of Fair Trial/Trial by Media Intellectual Property Rights Media ethics and cultural dependence Student PresentationsPhotocopied material for Study Packs in India; Aaron Swartz. Attack on Freedom of artists and authors

Unit 2 Media Technology and Ethical Parameters Live reporting and ethics Legality and Ethicality of Sting Operations, Phone Tapping etc Ethical issues in Social media ( IT Act 2000, Sec 66 A and the verdict of The supreme court ) Discussion of Important cases-eg- Operation Westend Some Related laws- Relevant sections of Broadcast Bill, NBA guidelines Student PresentationsTehelka‘sWestend . School Teacher Uma Khurana case 

Unit 3- Representation and ethics Advertisement and Women Pornography Related Laws and case studies- Indecent representation of Women (Prohibition) Act, 1986 and rules 1987, Protection of Women against Sexual Harassment Bill, 2007, Sec 67 of IT Act 2000 and 292 IPC etc Student PresentationsStudents will submit on above mentioned topics. 

Unit 4- Media and Regulation Regulatory bodies, Codes and Ethical Guidelines Self Regulation Media Content- Debates on morality and Accountability: Taste, Culture and Taboo Censorship and media debates

Unit 5- Media and Social Responsibility Economic Pressures Media reportage of marginalized sections- children, dalits, tribals, Gender Media coverage of violence and related laws - inflammatory writing (IPC 353), Seditionincitement to violence, hate Speech. Relevant Case Studies – Muzaffarpur Riots, Attack on civil liberties of individuals and social activists

Essential Reading list:  Thakurta, ParanjoyGuha, Media Ethics, Oxford University Press, 2009  Barrie mc Donald and Michel petheran Media Ethics,mansell,1998  Austin Sarat Where Law Meets Popular Culture (ed.), The University of Alabama Press , 2011  VikramRaghvan, Communication Law in India, Lexis Nexis Publication,2007  IyerVekat, Mass Media Laws and Regulations in India-Published by AMIC, 2000  William Mazzarella, Censorium: Cinema and the Open Edge of Mass Publicity  RaminderKaur, William Mazzarella, Censorship in South Asia: Cultural Regulation from Sedition to Seduction  Linda Williams, Hard Core: Power, Pleasure, and the "Frenzy of the Visible" 

SEMESTER V 
C11 Global Media and Politics 

Unit 1: Media and international communication: The advent of popular media- a brief overview Propaganda in the inter-war years: Nazi Propaganda, Radio and international communication 

Unit II: Media and super power rivalry: Media during the Cold War, Vietnam War, Disintegration of USSR; Radio free Europe, Radio Liberty, Voice of America Communication debates: NWICO, McBride Commission and UNESCO Unequal development and Third World concerns: North-South, Rich – Poor

Unit III : Global Conflict and Global Media World Wars and Media Coverage post 1990: Rise of Al Jazeera The Gulf Wars: CNN‘s satellite transmission, embedded Journalism 9/11 and implications for the media

Unit IV: Media and Cultural Globalization Cultural Imperialism, Cultural politics: media hegemony and Global cultures, homogenization, the English language Local/Global, Local/Hybrid 

Unit V: Media and the Global market Discourses of Globalisation: barrier–free economy, multinationals, technological developments, digital divide Media conglomerates and monopolies: Ted Turner/Rupert Murdoch Global and regional integrations: Zee TV as a Pan-Indian Channel; Bollywood Entertainment: Local adaptations of global programmes KBC/Big Boss/Others 

Suggested readings: - DayaKishanThussu. International Communication: Continuity and Change, Oxford University Press ,2003. - Yahya R. Kamalipour and Nancy Snow. War, Media and Propaganda-A Global Perspective, Rowman and Littlefield Publishing Group, 2004. - Communication and Society, Today and Tomorrow “ Many Voices One World”Unesco Publication, Rowman and Littlefield publishers, 2004. - Barbie Zelizer and Stuart Allan. Journalism after 9/11, Taylor and FrancisPublication, 2012. - DayaKishanThussu .War and the media : Reporting conflict 24x7, Sage Publications,2003. - Stuart Allan and Barbie Zelizer. Reporting war : Journalism in war time, Routledge Publication, 2004. - Lee Artz and Yahya R. Kamalipor. The Globalization of Corporate Media Hegemony, New York Press,2003. - Yadava, J.S, Politics of news, Concept Publishing and Co.1984. - ZahidaHussain and Vanita Ray. Media and communications in the third world countries,Gyan Publications,2007. Additional Readings: - Choudhary, Kameswar (ed) Globalisation, Governance Reforms and Development in India, Sage, New Delhi, 2007. - Patnaik, B.N &ImtiazHasnain(ed). Globalisation: language, Culture and Media, Indian Institute of Advanced Studies, Shimla,2006. - Monroe, Price. Media Globalisation’ Media and Sovereignity, MIT press, Cambridge,2002. - Singh, Yogendra. Culture Change in India: Identity and Globalisation, Rawat Publication, New Delhi, 2000. - Lyn Gorman and David McLean. Media and Society into the 21st Century: A Historical Inroduction. (2nd Edition) Wiley-Blackwell, 2009. pp.82-135, 208-283. Internal Assessment: The internal assessment will be based on assignments, group discussions and tests conducted in class. 

C12 Advanced Broadcast Media 

 Unit I‐ Public Service Broadcasting Public Service Model in India (Policy and laws) Global Overview of Public Service Broadcasting Community Radio, Community Video Participatory Communication Campus Radio 

Unit II‐Private Broadcasting Private Broadcasting Model in India; Policy and Laws Structure, Functions and Working of a Broadcast Channel Public and Private partnership in television and Radio programming (India and Britain case studies) 

Unit III: Broadcast Genres‐ Why am I the 'Idiot Box'? ‐ Debates, Issues and Concerns of Television Genre Various Evolving Contemporary Television genres: Drama, soap opera, comedy, reality television, children's television, animation, prime time and day time. 

Unit IV ‐ Advanced Broadcast Production I ‐ (Radio) Writing and Producing for Radio Public Service Advertisements Jingles Radio Magazine shows 

UNIT V - Advanced Broadcast Production II - (Television) Mixing Genres in Television Production‐ Music Video for social comment/as documentary Mixing ENG and EFP Reconstruction in News based Programming 

Suggestive projects  Script writing  Presentation of experimental genere in Radio/ TV  Presentation about PSBT and such organizations.  Script on Music Presentation  Presentation of Commercial Channel functions.  Presentation on global broadcasting models & Indian Broadcasting Models 

Readings A. Glen Creeber, Toby Miller and John Tulloch, The Television Genre Book (London: British Film Institute, 2009) B. Robert B Musburger and Gorham Kindem, Introduction to media Production, (Elsevier: Focal Press Focal Press)Pg‐95‐133, 179‐212 C. AmbrishSaxena, Radio in New Avatar‐ AM to FM,(Delhi: Kanishka) , Pg‐ 92‐138, 271‐307 D. Ted White and Frank Barnas, Broadcast News, Writing Reporting & Producing, (Elsevier, Focal Press ,2012) 3‐17, 245‐257, 279‐286 E. Herbert Zettl, Television Production Handbook, (Delhi : Akash Press, 2007 ) 190‐208 F.VinodPavarala, Kanchan K Malik, FACILITATING COMMUNITY RADIO IN INDIA: Profiles of NGOs and their Community Radio Initiatives Other Voices (New Delhi: Sage, 2007) G. Mc Leash, Robert, Radio Production (US: Taylor & Francis )

SEMESTER VI 
C13 Advanced New Media 

UNIT 1Basics of New Media Frameworks – Genres and Environments Understanding New Media Ecologies, Trans-medial Storytelling, Genres – Digital art, Digital Cinema – New Media Fiction and Documentary, Gaming and Player Culture, Virality and Memes, et al.; guerrilla media; curating media, festival, media spaces 

UNIT 2 Sociology of the Internet and New Media Social Construction of Technology, Utopian-Dystopian Interface, Digital inequalities – Digital Divide and Access, Economy of New Media - Intellectual value; digital media ethics, new media and popular culture. 

UNIT 3 Critical New Media Who controls New Media, Questions surrounding net neutrality and related issues, Surveillance and the state, Cybersecurity and issues of privacy, the Internet and public sphere - politics and public sphere in the digital age. 

UNIT 4 Participatory culture Convergence Culture - social media and participatory media culture, digital fandom and online communities, Identity, Gender and new media- digital media and identities, new media campaigns. 

UNIT 5 Project and Production Digital production in the form of shorts, video, podcast, video blog, photo blog, blogs and microblogs etc. related to one of the above three units or all, research and developmental techniques, ideas for final project, scripting/production, social media marketing and publicity, exhibition/screening 

Things to Do: 1. Working in groups of two/three the students will be required to undertake the production. The genre can be decided by the faculty in charge. 2. They must also undertake a web based art project or installation where they will experiment with cross platform storytelling techniques leading to a development & understanding of new strategies of exhibition and distribution. 3. An observational field project on use of new media in Panchayats/rural areas like the Bharat Broadband Project leading to a monograph/short is also recommended. 4. They should also attempt creating a mobile capsule for social activism and marketing it through social networks & actively participate in a Cyber Media campaign. 

Readings: ―New Media and New Technologies‖ by Lister Dovey, Giddings, Grant & Kelly. (2003). Rosen, J. ―The People Formerly Known as the Audience‖ What video games have to teach us about language and literacy. New York, NY: Palgrave Macmillan. Bogost, Ian. Persuasive games: The expressive power of videogames. MIT Press, 2007. Bosker, ―Randi Zuckerberg: Anonymity online has to go away‖ Negroponte, N. (1996). Being Digital, Part 3 [pp. 163-233] Jenkins, Henry. (2006). Convergence Culture: Where Old and New Media Collide. New York, NY: NYU Press. May, Keenan & Peter Newcomb. (2008, July) How the Web was won. Vanity Fair, retrieved from http://www.vanityfair.com/culture/features/2008/07/internet200807 ―Privacy vs. the Internet: Americans Should Not Be Forced to Choose‖ (ACLU report, 2008) Nakamura, ―Race In/For Cyberspace: Identity Tourism and Racial Passing on the Internet‖ 

C14 Communication Research and Methods 

 Unit I – Introduction to Research Definition, Role, Function, Basic and Applied Research, Scientific Approach, Role of theory in research, Steps of Research (Research question, Hypothesis, Review of Literature….)

Unit II – Methods of Media Research Qualitative- Quantitative Technique, Content Analysis, Survey Method, Observation Methods, Experimental Studies, Case Studies, Narrative Analysis, Historical research. 

Unit III – Sampling Need for Sampling, Sampling Methods, Representativeness of the Samples, Sampling Error, Tools of data collection: Primary and Secondary data-Questionnaire, Focus Groups, Telephone, Surveys, Online Polls, Published work. 

Unit IV- Methods of analysis and report writing Data Analysis Techniques; Coding and Tabulation, Non-Statistical Methods (Descriptive and Historical) Working with Archives; Library Research; Working with Internet as a source; Writing Citations, Bibliography Writing the research report 

Unit V - Ethnographies and other Methods Readership and Audience Surveys Ethnographies, textual analysis, discourse analysis Ethical perspectives of mass media research 

Readings: - Wimmer, Roger, D and Dominick, Joseph,R. Mass Media Research, Thomson Wadsworth, 2006, pgs1-60; 65-81;83-98. - Arthur Asa Berger. Media Research Techniques, Sage Publications, 1998. - John Fiske. Introduction to Communication Studies, Routledge Publications,1982. - David Croteau and William Hoynes. Media/Society: Industries, Images and Audiences, Forge Press (For Case Studies) Amazon,2002. - Kothari, C.R. Research Methodology: Methods and Techniques, New Age International Ltd. Publishers, 2004, pgs1-55; pgs95-120. - Bertrand, Ina and Hughes, Peter. 2005. Media Research Methods; Audiences, institutions, Texts. New York; Palgrave